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Home Uttarakhand

बदरीनाथ की हार से क्यों बच रहा है भाजपा संगठन और सरकार

Panchayat Reporter by Panchayat Reporter
July 18, 2024
in Uttarakhand, राजनीति
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बदरीनाथ की हार से क्यों बच रहा है भाजपा संगठन और सरकार
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उत्तराखण्ड की बदरीनाथ सीट पर आए उपचुनाव के नतीजों ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा । लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस से भाजपा में गए राजेंद्र भण्डारी को पहली बार चुनावी समर में कूदे कांग्रेस के लखपत बुटौला ने पांच हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया । पहाडों में हार और जीत का ये मार्जिन बड़ा माना जाता है ।

जिसके बाद बेहद चालाकी से भाजपा संगठन और सरकार ने हार की ठीकरा प्रत्याशी के सर कर दिया । लेकिन अगर इस हार की समीक्षा की जाए तो ये हार सरकार और संगठन की है ।

हार के ठीक बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य सभा सांसद महेंद्र भट्ट का बयान सोशल मीडिया में तैरने लगता है । वो कहते हैं कि लोकसभा चुनावों में हम इस सीट से आठ हजार वोटों से आगे थे लेकिन उपचुनावों में हम 5 हजार वोटों से पीछे रह गए है । और प्रत्याशी चयन करने में गलती को इसका कारण बताया । लेकिन ऐसा कहकर वो अपनी जिम्मेदरियों से पल्ला झाड़ रहे हैं ।

महेंद्र भट्ट प्रदेश अध्यक्ष तो हैं ही साथ ही राष्ट्रीय नेतृत्व की उन पर ऐसी कृपा बरसाई की उनको राज्यसभा भी भेज दिया । लेकिन इसके बावजूद वो विधानसभा उपचुनाव नहीं जिता पाए जब्कि भट्ट इस सीट से विधायक रह चुके हैं । 2022 में हुए विधानसभा चुनावों मे वो इस सीट को 2066 वोटों से हारे थे । लेकिन इस बार ये आंकड़ा 5 हजार से ज्यादा का है । इस हार पर जवाबदेही तो बतौर प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की सबसे ज्यादा बनती है । क्योंकि इस विधानसभा से वो 2017 में विधायक रहे है ।

2022 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया लेकिन वो 2066 वोटों से हार गए । कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि इस विधानसभा की तासीर को बेहतर जानते थे । वो प्रदेश अध्यक्ष भी हैं । ऐसे में इस सीट से हारना बतौर अध्यक्ष और सांसद उनकी विफलता है ।

महेद्र भट्ट ,राजेंद्र भण्डारी और कांग्रेस प्रत्याशी लखपत बुटौला तीनों पोखरी ब्लॉक से आते हैं । महेंद्र भट्ट का बूथ ब्राहम्णथाला है जहाँ से भाजपा 30 वोटों से आगे रही । लेकिन इस ब्लॉक में भाजपा लगभग दो हजार वोटों से पिछड़ गई ।अपने ब्लॉक से भी महेंद्र भट्ट पिछड़ गए ।

ये पूरा मामला शुरु होता है 2024 के लोकसभा चुनावों से जब गढ़वाल संसदीय सीट से भाजपा ने अनिल बलूनी को मैदान में उतारा । चुनाव प्रच्रार के दौरान अचानक खबर आती है कि दिल्ली में बदरीनाथ से कांग्रेस के विधायक राजेंद्र भण्डारी भाजपा के हो लिए ।
वही कुछ घंटे पहले वो कांग्रेस के लिए प्रचार करते हुए भाजपा को कोस रहे थे । वो ये भी कह रहे थे कि उनके भाजपा में शामिल होने की अफवाऐं उडाई जा रही हैं। लेकिन कुछ ही घंटे बाद अफवाऐं सच हो गई ।
भले ही भाजपा ने इस सीट से आठ हजार वोटों की बढ़त बनाई हो लेकिन इसी समय उपचुनाव में भाजपा की हार की पटकथा आम वोटर की नारज़गी ने लिख दी थी ।

राजनितिक जानकार मानते हैं कि किसी भी राज्य का उपचुनाव में जिस दल की सरकार होती है उस दल को मनौवैज्ञानिक बढ़त रहती है ।इसके अलावा सरकार अपनी उपल्बधियों को भुनाती है । लेकिन बदरीनाथ के वोटर ने सरकार के दावों को भी इस उपचुनाव में नकार दिया ।

हाल ही में नीति आयोग द्वारा सतत विकास लक्ष्य में उत्तराखण्ड को प्रथम स्थान मिलने का खूब प्रचार किया गया । इसके साथ ही फरवरी महीने में ही खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चमोली जिले में 400 करोड़ के विकास कामों का शिलान्यास और लोकार्णप किया । लेकिन नतीजों ने बता दिया कि सरकारी ऐलान का असर वोटर पर नहीं हुआ है ।
जोशीमठ लगातार दरक रहा है । सरकार ने जोशीमठ के जख्मों पर मरहम के सारे दावे किए लेकिन इस ब्लॉक से भी भाजपा लगभग 1700 वोटों से पिछड़ गई । इसी ब्लॉक मे बद्रीनाथ धाम है जिसका कायापलट करने का दावा मुख्यमंत्री हर मंच पर करते रहते हैं ।
इसके अलावा मोदी सरकार की एक महत्वकांशी वाईब्रेंट विलेज भी इस जिले के कई सीमांत इलाकों में चल रही है । प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे ही एक सीमांत गाँव माणा का दौरा किया था । उसे भारत के अंतिम गाँव की जगह भारत का पहला गाँव कर संबोधित किया लेकिन इस गाँव से भाजपा को केवल 44 वोट मिले और कांग्रेस को 184 वोट । वहीं नीति जो एक और सीमांत गाँव है वहाँ से भाजपा को 14 वोट मिले और कांग्रेस को 27 जोशीमठ के ज्यादातर सीमांत गाँव से भाजपा भारी अंतर से पिछड़ गई ।

राजेंद्र भण्डारी किन हालातों में भाजपा में आए वो ही बेहतर जानते हैं । लेकिन राजनीतिक समझ रखने वाले व्यक्ति ये मानते है कि राजेंद्र भण्डारी के भाजपा में आने का निर्णय बेहद अटपटा था । क्योंकि भण्डारी कोई भी सियासी लाभ इससे नहीं मिल रहा था। पाला बदलने से उनकी विधायकी गई और दौबारा उन्हें चुनावी परिक्षा में उतरना पड़ा ये बात तो भण्डारी जैसा अनुभवी नेता पहले से जानता ही होगा । तो उन्होने इतना बडा जोखिम अपनी मर्जी से लिया या किसी और की मर्जी के आगे वो झुक गए ।

भण्डारी के भाजपा में आने से पहले चमोली जिले में कांग्रेस संगठन का बड़ा हिस्सा टूटकर पहले ही भाजपा में शामिल हो गया था । जिसमें बदरीनाथ विधानसभा से कई मजबूत कार्यकर्ता शामिल थे । संगठन के लिहाज से बेहद कमजोर कांग्रेस से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी और पन्ना प्रमुखों से सुसज्जित भाजपा की बदरीनाथ में हार संगठन और धामी सरकार की भी हार है ।

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