एन एच 74 नेशनल हाईवे घोटाला जिसको आधार बना कर 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा गया । इन चुनावों में ये मुद्दा भाजपा का प्रमुख हथियार बना । सत्ता में आने के बाद एन एच 74 का मामला सरकार को घेरने के लिए कांग्रस की खास रणनीति का हिस्सा रहा । कांग्रेस इसकी जांच सी बी आई से कराने की मांग करती रही और आखिर में एस आई टी की जांच का ऐलान तत्कालीन सी एम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कर दिया । इसके बाद राजनीतिक दलों ने भले ही इस मुद्दे को हल्के से कोने में सरका दिया । लेकिन एस आई टी के गठन के बाद शुरु होता है नौकरशाही में शह और मात का खेल । अपने विरोधियों को किस तरह इस जांच के जरिए ठिकाने लगाया जाए इसका पूरा इंतजाम किया गया । आज पहली बार हम आपके समाने ऐसे तथ्य और दस्तावेज रखने वाले है जिससे आपको एहसास होगा कि राजनीतिक दलों के कार्यालयों में सियासत की जितनी चालें चली जाती है । प्रदेश का सचिवालय और उसमें बैठी नौकरशाही उससे एक कदम आगे है ।
इस पूरे मामले की शुरुआत होती है 2 मार्च 2017 को जब तत्कालीन कुमाऊं कमिशनर डी सेंन्थिल पांडियन ने तत्कालीन मुख्य सचिव को पत्र लिखा । जिसमें उन्होने नेशनल हाईवे के निर्माण के लिए भूमी अधिग्रहण में दिए जाने वाले मुआवजे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए । उन्होने पाया कि कृषि भूमि का लैंड यूज बदलकर मुआवजा राशि को 8 से 10 गुना बढाकर कर बांटा गया । जिसके पांच दिन बाद 7 मार्च को मुख्य सचिव ने बैठक बुलाई और एक कमेटी का गठन किया जिसमें दोषियों और लिप्त अधिकारियों को चिन्हित करके उनके खिलाफ मुकदमा करने के आदेश दिए । इसके लिए कुमाऊं कमिशनर की अध्यक्षता में चार सदस्य समिति का गठन किया गया ।
और अगले ही दिन 8 मार्च को तत्कालीन कुमाऊं कमिशनर ने एक पत्र जिलाधिकारी उधमसिंह नगर को लिखा । चार सदस्य जांच समिति के अध्यक्ष होने के नाते 10 मार्च को एक बैठक आहूत की गई। जिसमें मामले से जुडी सरकारी पत्रावलियाँ लाने के निर्देश जिलाधिकारी को दिए । लेकिन ये बैठक कभी हुई ही नहीं । बिना इस बैठक के उसी दिन एस एस पी उधमसिंह नगर को पत्र लिख मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिया जाता है । इस एफ आई आर में एन एच 74 में भूमि अधिग्रहण और मुआवजा राशि के निर्धारण से जुडे सभी विभागों के कर्मचारियों औऱ अधिकारियों के नाम शामिल होते हैं ।
मुख्य सचिव ने अपने आदेश में ये स्पष्ट किया था कि दोषी अधिकारियों को चिन्हित किया जाए । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । और मामले से जुडे सभी विभागों के कर्मचारियों को कटघरे में खड़ा कर दिया गया ।
जांच समिति और जिला प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से ले रहे थे ,उसकी बानगी उधमसिंह नगर के अपर जिलाधिकारी के 20 मार्च के एक पत्र से मिलती है जो एस एस पी उधमसिंहनगर को जिला प्रशासन द्वारा लिखा जाता है । इस पत्र में अनुरोध किया जाता है त्रुटिवश 10 मार्च के पत्र में कुछ नाम छूट गए है और इन नामों को भी एफ आई आर में जोड़ दिया जाए । पूरे 10 दिन बाद जिला प्रशासन को ये बात याद आती है । और विशेष भूमि अध्यापित अधिकारी और उनके कार्यालय के कर्मचारियों पर मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है ।
बतौर विशेष भूमि अध्यापित अधिकारी उधमसिंह नगर में तैनात थे पी सी एस अधिकारी डी पी सिंह । जो आगे चलकर इस मामले के मुख्य आरोपी बन गए । इस पूरे मामले में सिविल जज की भूमिका में थे । जो शिकयतों का निवारण। जमिनों का बाजार मूल्य तय करने जैसे निर्णय ले रहे थे । हालांकि इस मामले में दो आई ए एस अधिकारी पंकज पांडे और चंद्रेश यादव को भी निलंबित किया गया था । लेकिन कुछ समय बाद उन्हें बहाल कर दिया गया ।
इस मामले की गहन जांच के लिए एक एस आई टी का गठन किया गया । और अब डी पी सिंह मुख्य आरोपी थे । एस आई टी की जांच में डी पी सिंह को मुख्य आरोपी बनाए जाने का सबसे मजबूत आधार था कि उन्होने बैक डेट पर अधिग्रहित की गई जमीनों का लैंड यूज कृषि से बदलकर कमर्शियल कर दिया है । जिससे कुछ लोगों को मुआवजे की राशि 8 से 10 गुना बढाकर बांटी गई। जिससे सरकार को राजस्व की हानि हुई ।
इसके अलावा एक और तथ्य जिस पर पूरा केस खड़ा किया गया उसमें कहा गया कि भूमि का बाजार मूल्य जिन नियमों और प्रावधनों पर किया गया न्याय संगत नहीं थे ।
एस आई टी के इन दावों को जब दस्तावेजों की कसौटी पर परखा तो कुछ प्रशन हमारे सामने खड़े हो गए ।
सबसे पहले एस आई टी के उस दूसरे तथ्य को समझ लेते हैं जिसमें जमीन का बाजार मूल्य तय करने में घपले की बात आ रही है । एस आई टी का कहना है कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 एवं भूमि अर्जन ,पुनर्वासन और पुर्नवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 में 3(डी)अधिसूचना में वर्णित भूमि की प्रकृति के अनुसार ही मुआवजा तय किया जाना था ।
वहीं मुआवजे की राशि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम 1956 की धारा 3 (जी)(7) में बताई प्रक्रिया और पुनर्वासन और पुर्नवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 की धारा 26,27,28 का अनुसरण करते हुए की गई । इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट और अलग अलग राज्यों के हाई कोर्ट द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुसार किया गया है ।
इस प्रकरण में एस आई टी की बात में दम है या फिर डी पी सिंह सही है । ये बात एस आई टी के ही एक पत्र से साफ हो जाती है । जुलाई 2019 को एस आई टी द्वारा एक पत्र, विशेष भूमि अध्यापित अधिकारी को लिखा जाता है । जिसमें एन एच 74 फोर लेन निर्माण के लिए अधिग्रहित भूमि के मुहावजा तय करने के मानक क्या है और उसका स्टीमेट क्या है इसकी जानकारी मांगी गई है ।
ऐसा ही एक पत्र 29 जुलाई 2019 को एस एस पी खुद जिलाधिकारी को लिखते है । जिसमें वो जानकारी मांग रहे हैं कि चिन्हित की गई भूमि ,आवासीय और व्यवसायिक भवनों की मार्केट वेल्यू किस मानक के तहत आंकी जाती है ।
दरअसल जमीनों से जुडे मामलों की पूरी जानकारी पुलिस को हो ऐसा जरुरी नहीं है । भूमि से जुडी जानकारियाँ उससे जुडे नियम उनकी ट्रैनिंग का हिस्सा नहीं होते हैं । इसकी पेचीदगियाँ राजस्व विभाग ही समझ सकता है । और इसलिए एस आई टी ने इसकी जानकारी सक्षम अधिकारियो से मांगी ।
विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी कार्यालय द्वारा सितंबर महीने में इसका जवाब दिया जाता है । जिसमें बाजार मूल्य के निर्धारण के लिए उन्ही धाराओं का उल्लेख किया जाता है जिसके आधार पर डी पी सिंह ने विशेष भूमि अध्याप्ति अधिकारी रहते हुए मुआवजा तय किया था । इस जानकारी से आप चौंके होंगे लेकिन रुकिए अगली जानकारी आपको जोर का झटका देने वाली है ।
पुलिस की एस आई टी टीम और खुद एस एस पी ने ये जानकारी एन एच 74 घोटाले मामले में जांच को मजबूत करने के लिए मांगी ताकि वो दोषियों को चिन्हित कर आरोप तय कर सके । लेकिन आप तारीख पर गौर करें, जुलाई 2019 में जानकारी मांगी गई । जबकि डी पी सिंह पर चार्जशीट जनवरी 2018 में पुलिस लगा चुकी थी । जिस समय पुलिस डी पी सिंह पर आरोप तय कर रही थी तो क्या उन्हे ये जानकारी नहीं थी की बाजार मूल्य कैसे तय किया जाता है । ऐसे में सवाल उठता है कि बाजार मूल्य गलत तरीके से तय हुआ है इस नतीजे पर एस आई टी कैसे पहुँची । और इसके लिए डी पी सिंह को आरोपी कैसे बनाया ।
एस आई टी ने अपनी जांच का दूसरा आधार बनाया बैक डेट में कृषी भूमी का लैंड यूज बदलकर कर्मशियल किया गया और करोड़ों के वारे न्यारे किए गाए ।
लेकिन 2023 में ई डी की अदालत ने अपने एक आदेश में इस आरोप को भी सिरे से खारिज कर दिया । ई डी के स्पेशल जज प्रदीप पंत ने डी पी सिंह को जमानत देते हुए कहा कि इस पूरे मामले में कोई भी मनी ट्रैल साबित नहीं हो पाई है । वहीं बैक डेट पर लैंड यूज बदलने के मामले में कोर्ट ने कहा कि इस मामले में ये प्रकाश में आया है कि जिस समय लैंड यूज बदला गया उस समय डी पी सिंह वहाँ तैनात ही नहीं थे । और बैक डेट पर लैंड यूज बदलने का मामला उनकी तैनाती से पहले का है । इसके साथ ही अपनी टिप्पणी में स्पेशल जज कहते हैं कि पी एम एल ए के सेक्शन 45 में डी पी सिंह को दोषी मानने के कोई कारण नहीं है । पी एम एल ए की धाराओं से भी सिंह को कोर्ट ने राहत दी ।
ऐसे में एस आई टी ने जिन तथ्यों पर अपनी जांच खड़ी की वो ढेर होते हुए दिखाई देते हैं ।
ईडी द्वारा 7 मामलों में डी पी सिंह के खिलाफ मामले दर्ज किए गए । जिनमें से पाँच में उन्हें कोर्ट से राहत मिल चुकी है ।
विधानसभा चुनावों के दौरान एस आई टी कांग्रेस के खातों की जांच कर रही थी जिसमें ये कहा जा रहा था कि घोटाले का पैसा जमा किया गया है । उस दौरान इससे जुडी खूब खबरें भी छपी । लेकिन एस आई टी की जांच में उस खाते का क्या हुआ कुछ पता नहीं चल पाया । एस आई टी की जांच करने के तरीके पर उस दौरान आई ए एस एसोसिएशन ने भी कई गंभीर सवाल खडे किए थे ।
हाल ही में हल्द्वानी की विशेष अदालत ने अभियोजन की स्वीकृती निरस्त होने के आधार पर ट्रायल समाप्त करने से मना कर दिया । शासन द्वारा कराई गई विभागीय जांच में डी पी सिंह को क्लीनचिट मिली थी । लेकिन जांच रिपोर्ट कोर्ट में फाईल ही नहीं की गई थी । इस मामले में कोर्ट ने उधमसिंह नगर के जिलाधिकारी और सरकार पर तीखी टिप्पणी की।
एन एच 74 मामला प्रदेश का पहला ऐसा मामला है जिसमें सत्ता पक्ष , विपक्ष और मुख्य आरोपी सी बी आई जांच की मांग कर रहे थे । साल 2017 में जब इस मामले की जांच चल रही थी तब डी पी सिंह ने खुद मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर सी बी आई की जांच की मांग की । उन्होने हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया । खुद के खिलाफ सी बी आई का जांच की मांग और कोर्ट में एफिडेविट देने की हिम्मत वही कर सकता है जिसे अपने बेगुनाह होने का पूरा यकीन हो । उनका कहना था एक सिंडिकेट के साथ मिल कर एस आई टी उनके विरुद्ध काम कर रही है ।
एन एच 74 मामला ऐसा मामला है जो प्रदेश की नौकरशाही में पनप रही घिनौनी राजनीति का भी पर्दाफाश करता है ।
भारत में ऐसे मामलों में फंसे लोगों की स्थति को देखकर ये कहा जाता है “Process is Punishment”, “प्रक्रिया ही प्रताडना” है और ये पूरा मामला इसका सटीक उदाहरण है ।